तुलसी माता की कथा | Tulsi Mata Ki Katha | तुलसी और विष्णु की कहानी | Tulsi Vivah Ki Kahani

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तुलसी माता की कथा | Tulsi Mata Ki Katha | तुलसी और विष्णु की कहानी | Tulsi Mata Bhajan

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Credits:
Singer : Mamta Raut
Lyrics : Suresh Tiwari
Music : Kashyap Vora
Music Label: Wings Music
© & ℗ Wings Entertainment Ltd.

Lyrics:
श्री हरि संग तुलसी माता को हम
शीश झुकाते हैं
सादर शीश झुकाते हैं
तुलसी माता की पावन मंगल
कथा सुनाते हैं
मंगल कथा सुनाते हैं
एक पतिव्रता के तप की अद्भुत
महिमा गाते हैं
अद्भुत महिमा गाते हैं
जय जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
जय जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
किसी भूल वश लक्ष्मी माता को
एक श्राप मिला
जिसके कारण उनको दानव
कन्या बनना पड़ा
जन्म से ही उनमें श्रीहरि की
भक्ति समाई थी
एक अलौकिक अद्भुत अनुपम
शक्ति समाई थी
नियमित श्री हरि नारायण का
पूजन करती थी
सच्ची श्रद्धा भक्ति सहित
पदवंदन करती थी
संयम नियम निभाते हुए
आराधन करती थी
धर्म कर्म का तन मन से वो
पालन करती थी
मात-पिता सब उन पर अपना
स्नेह लुटाते हैं
सब मिल स्नेह लुटाते हैं
तुलसी माता की पावन मंगल
कथा सुनाते हैं
जय जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
जय जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
वृंदा नाम की वह कन्या
दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी
और भी संयम नियम से हरि की
पूजा करने लगी
हुई वयस्क तो मात-पिता ने
उसका विवाह किया
परम प्रतापी असुर जालंधर को
उसे सौंप दिया
असुर जालंधर महाबली और
अत्याचारी था
एक अकेला ही सारे
देवों पर भारी था
इंद्र सहित सब देवों का पद
उसने छीन लिया
तीनों लोक जालंधर ने
अपने आधीन किया
इंद्र और शिवजी भी उसको
मार न पाते हैं
जालंधर मार न पाते हैं
तुलसी माता की पावन मंगल
कथा सुनाते हैं
जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
जय जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
वृंदा के तप के कारण वह
असुर अजेय हुआ
तीनों लोक में कोई भी
उसको ना मार सका
पतिव्रता का धर्म कर्म
एक कवच बनाता था
जिसके कारण कोई भी उसे
मार ना पाता था
छल से श्री विष्णु ने उसके
व्रत को भंग किया
उसी समय शिव ने रण में
जालंधर मार दिया
वृंदा को जब श्रीहरि के
इस छल का पता चला
श्राप दिया उसने तुम
बन जाओ पत्थर की शिला
तभी से हरि नारायण
शालिग्राम कहाते हैं
शालिग्राम कहाते हैं
तुलसी माता की पावन मंगल
कथा सुनाते हैं
जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
जय जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
साध्वी वृंदा सती हो गई
पति के मरने पर
भस्म उसी की प्रकट हुई फिर
एक पौधा बनकर
श्री हरि ने उस पौधे को
तुलसी का नाम दिया
और तुलसी को घोषित कर दिया
अपनी परम प्रिया
अपनी परम भक्त को प्रभु ने
ऐसे मान दिया
अपने बराबर तुलसी को
श्री हरि ने स्थान दिया
शालिग्राम पर जब तक
तुलसी दल ना अर्पण हो
तब तक ना स्वीकार उन्हें
कोई भी समर्पण हो
तभी से तुलसी दल
हरि नारायण को चढ़ाते हैं
तुलसी हरि को चढ़ाते हैं
तुलसी माता की पावन मंगल
कथा सुनाते हैं
जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
जय जय तुलसी माता
मनवांछित फल दाता
देवोत्थानी एकादशी का
पर्व जब आता है
विधि विधान से तुलसी विवाह
कराया जाता है
श्री हरि विष्णु और तुलसी को
मिलाया जाता है
भक्ति सहित यह शुभ त्यौहार
मनाया जाता है
तुलसी जी ने श्री हरि भक्ति का
फल यूं पाया है
श्री हरि ने सादर उनको
निज अंग लगाया है
तुलसी माता नारायण के
हृदय की रानी हैं
सुर नर मुनि सब की पूज्या
तुलसी महारानी हैं
तुलसी विवाह महोत्सव
तीनों लोक मनाते हैं
तीनों लोक मनाते हैं
तुलसी माता की पावन मंगल
कथा सुनाते हैं
तुलसी माता की जय
वृंदा माता की जय
तुलसी माता की जय
वृंदा माता की जय

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